20-Jun-2024

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राजस्थान बीजेपी में बड़े बदलाव की आहट, दिल्ली तलब हुए नेता

राजस्थान में लोकसभा की सभी 25 सीटों पर जीत का दावा कर रही बीजेपी में ग्यारह सीटों पर हार के बाद उठा पटक के संकेत मिल रहे है. कांग्रेस अपनी जीत से उत्साहित है और पार्टी नेताओं का दावा है कि जल्दी ही राजस्थान में सीएम की कुर्सी के लिए नई पर्ची खुलेगी. बीजेपी के नेताओं को आलाकमान ने दिल्ली तलब किया है और हार के कारणों पर चीरफाड़ जल्दी शुरू होने की संभावना है.
दरअसल, महज़ पांच महीने पहले ही पूर्ण बहुमत के साथ राजस्थान की सत्ता से कांग्रेस को बेदखल करने वाली बीजेपी लोकसभा चुनाव में एक साथ ग्यारह सीटे गंवा बैठी. हार भी इतनी बुरी कि खुद सीएम भजनलाल शर्मा का गढ़ भरतपुर भी हाथ से निकल गया. बीजेपी में अब इस करारी हार के कारण तलाशने के लिए मंथन और चिंतन शुरू हो गया है और साथ ही बदलाव की आहट भी है.
बीजेपी की इस हार का एक बड़ा पहलू ये भी रहा कि पांच महीने पहले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जिन सीटों पर हार हुई थी उन सीटों पर पार्टी लोकसभा में भी हार गई यानि पिछली हार से कोई सबक नहीं लिया गया.
राहुल कस्वां को टिकट न देने से हुआ नकुसान?
बीजेपी की हार के वैसे तो कई कारण है लेकिन जातिवादी समीकरण की अनदेखी और कई जगह गलत उम्मीदवारों का चयन हार की एक बड़ी वजह रही. चूरु से सांसद रहे राहुल कस्वां का टिकट काटना शेखावटी में बीजेपी की लुटिया डुबोने का एक बड़ा कारण बना. यही राहुल कस्वां चुनाव से पहले कांग्रेस में गए और टिकट लेकर चुनाव भी जीते. लेकिन अपनी हार के कारणों को लेकर बीजेपी के नेता बोलने की बजाय केवल इसी बात को लेकर खुश है कि केंद्र में मोदी की अगुवाई में उनकी सरकार बन रही है.
महेंद्रजीत मालवीय के आने से भी नहीं मिला फायदा
बाड़मेर में रवींद्र सिंह भाटी की मजबूत दावेदारी को नकारना भी बीजेपी के लिए परेशानी की वजह बना तो बांसवाड़ा में कांग्रेस छोड़कर आए महेंद्र जीत सिंह मालवीय को बीजेपी सबसे बड़ा आदिवासी चेहरा मान बैठी. मालवीय ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन ऐनवक़्त पर कांग्रेस ने भारतीय आदिवासी पार्टी से गठबंधन कर मालवीय को दो लाख वोटों से हराकर उन्हें घर बैठा दिया.
जाट वोट बैंक भी खिसका
जाट समुदाय ने इस बार खुल कर बीजेपी के खिलाफ वोट किया और इसी समुदाय से आने वाले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी माना कि उन्हें किसानों ने खुलकर वोट दिया. जाट वोटों की खिलाफत की वजह से बीजेपी ने सीकर, चूरु, झुंझनूं, नागौर, बाड़मेर, भरतपु्र, श्रीगंगानगर जैसी सीटे गंवा दी तो दूसरी तरफ भजनलाल सरकार में कैबीनेट मंत्री डॉ किरोड़ी लाल मीणा की नाराजगी के चलते पार्टी को दौसा और सवाई माधोपुर जैसी सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा. इसके चलते अब राजस्थान में सत्ता और संगठन में बदलाव की चर्चा शुरू हो गई है, लेकिन संगठन से जुड़े लोग इस तरह की चर्चाओं को नकार रहे हैं.
राजे को दरकिनार करना पड़ा भारी?
इन सब कारणों के अलावा प्रदेश की कद्दावर नेता वसुंधरा राजे को दर किनार करना भी बीजेपी को भारी पड़ा. वसुंधरा इस चुनाव में केवल अपने बेटे की सीट झालावाड़ में प्रचार करती नजर आईं, बाकी किसी भी लोकसभा सीट पर वो प्रचार करने नहीं गईं.
साभार- एबीपी न्‍यूज
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