प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में अटल जी के निधन पर 2 मिनिट का रखा मौन, अटल जी के दुखद निधन पर नवगठित प्रदेश चुनाव समिति की पहली बैठक की स्थगित, शोक संदेश का वाचन कर शोक प्रस्ताव पारित किया, इस अवसर पर कमलनाथ ने अटलजी के साथ संसद के अपने संस्मरण सुनाये...
कमलनाथ ने कहा कि जब में 1992 में पृथ्वी सम्मेलन से लौटा था तब अटल जी ने मुझे संसद में देखते ही कहा था कि आप बधाई के पात्र है, आपने भारत का पक्ष वहाँ अच्छे ढंग से रखा। उन्होंने कहा कि अटलजी ताज को लेकर चिंतित रहते थे। जब में पर्यावरण मंत्री था, उनका फ़ोन आया कि मैं, आपसे मिलने आना चाहता हूँ तो मैंने उन्हें कहा कि नहीं में आपसे मिलने आऊँगा। उन्होंने बढ़ते प्रदूषण से ताज महल को हो रहे नुक़सान पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने ताज के आसपास उद्योगों से फैल रहे प्रदूषण पर अपने सुझाव दिये तब मैंने उनके सभी सुझावों को माना।
मीडिया समन्वयकवे दलीय नहीं सर्वमान्य नेता थे- अजय सिंह नेता प्रतिपक्ष
वे दलीय नेता नहीं थे सर्वमान्य नेता थे । उनकी उपस्थिति हम जैंसे अनेक लोग जो राजनीति और सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हैं का मार्गदर्शन करते थे । गैर कांग्रेसी नेताओं से मेरे पूज्य पिताजी श्री अर्जुन सिंह के जो रिश्ते रहे उनमें अटल जी का नाम सबसे ऊपर था । वे हमारे परिवार के गैर राजनीतिक कार्यक्रमों में स्थायी रूप से उपस्थित रहने वालों में से थे । हर साल दिल्ली में पिताजी के निवास पर जन्माष्टमी और रामनवमी पर भजन संध्या होती थी । अटलजी सदैव उस कार्यक्रम में उपस्थित रहते थे। इस नाते अटलजी सदैव हमारे परिवार का एक हिस्सा रहे । एक बार अटलजी दिल्ली स्थित पिताजी के निवास पर मिलने आए । गलती से शाम 07:30 की बजाए वे सुबह 07:30 बजे घर पहुंच गए । उस समय मेरी माताजी थी । उन्होंने उन्हें बिठाला । अटल जी ने सारे अखबार पढ़े चाय पी फिर वे चले गए और शाम को फिर से आए। राजनैतिक विचारधारा दोनों की अलग-अलग थी लेकिन उससे कभी व्यक्तिगत व्यवहार, सौजन्यता और सद्भाव में कमी नहीं आई ।
वे पंडित नेहरू की परंपरा के नेता थे । गुजरात में जब दंगे हुए और सरकारी तंत्र नियंत्रण नहीं कर रहा था तब अटलजी ने ही प्रधानमंत्री रहते हुए गुजरात सरकार के मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राजधर्म निभाने का निर्देश दिया था । उन्होंने इस देश को जाति धर्म के आधार पर बांटने की बात नहीं की। अटलजी भारतीय राजनीति के आदर्श थे । उन्होंने कभी दलीय मतभेद को व्यक्तिगत भेद में शामिल नहीं किया । लोकसभा में उनको भाषण हमेशा यादगार रहा। वे उन विरले नेताओं में से थे जिन्हें सुनने के लिए लोगों को ढोकर नहीं ले जाना पढ़ता था बल्कि लोग स्वतः स्फूर्त हो कर उन्हें सुनने हजारों की संख्या में आते थे।
उनके सर्वमान्य व्यक्तित्व का उदाहरण है कि तत्कालीन प्रधाानमंत्री श्री पी.व्ही.नरसिम्हाराव ने उन्हें जेनेवा में होने वाले मानवाधिकार के सम्मेलन मे भारत का पक्ष रखते सरकार का प्रतिनिधि बनाकर भेजा था। इस सम्मेलन में पाकिस्तान कश्मीर मुद्दा उठाने वाला था। अटल जी ऐसी भारतीय राजनीति के आदर्श थे । उनका निधन हम सब भारतीयों के साथ दुनिया के तमाम देशों जिन्होंने उनके व्यकित्व और कृतित्व को जाना है उनके लिए बेहद दुःखद है। उनका न रहना अखरेगा । सच में आज की राजनीति में ऐसे व्यक्ति के चले जाने से लगता है कि कही मतभेद मनभेद में न बदल जाएं और वैचारिक भिन्नता दुश्मनी न बन जाए।