एंटीबॉयोटिक्स दवाओं को लेकर अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने चेतावनी जारी की है। इनके अनुसार एंटीबॉयोटिक्स दवाओं की वजह से मरीजों में मानसिक स्वास्थ्य की परेशानियां देखने को मिल रही हैं। मधुमेह ग्रस्त मरीजों में हाइपोग्लाइसेमिक कोमा समेत गंभीर रक्त शर्करा की गड़बड़ी हो सकती है। एफडीए की इस चेतावनी को लेकर राजधानी के डॉक्टरों ने भी चिंता जताई है। उनका कहना है कि दिल्ली में अभी भी एंटीबॉयोटिक्स दवाओं की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है।
कालरा अस्पताल ह्दयरोग विशेषज्ञ डॉ. आरएन कालरा ने बताया कि एफडीए ने फ्लूरोक्विनोलोन का जिक्र किया है। भारत में यह सबसे व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, जिसके तहत सैकड़ों एंटीबायोटिक दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं। इन दवाओं को कैप्सूल और इंजेक्शन के जरिए इस्तेमाल में लाया जाता है। उन्होंने बताया कि भारत 2000 से 2015 के बीच दोगुने से अधिक उपयोग के साथ एंटीबायोटिक्स दवाओं का दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल का कहना है कि बीते दिनों प्रिंसटन विश्वविद्यालय की एक रिसर्च भी आई थी, जिसके मुताबिक दुनिया भर के देशों में जहां एंटीबॉयोटिक्स दवाओं का इस्तेमाल 65 फीसदी बढ़ा है। वहीं भारत में यह आंकड़ा 103 प्रतिशत तक पहुंचा है।
उन्होंने बताया कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक अधिनियम के तहत 24 शक्तिशाली एंटीबायोटिक दवाएं शामिल हैं, जिनपर लाल रंग से लेबलिंग करना अनिवार्य है। फार्मासिस्ट के लिए भी निर्देश हैं कि मरीज, डॉक्टर, दवा का नाम, डोज आदि की जानकारी अलग से एक रजिस्टर पर नोट करके रखते चलें।
ऐसे नुकसान देती हैं ये दवाएं
डॉक्टरों के अनुसार इलाज योग्य जीवाणु एंटीबायोटिक्स से बचने के लिए तेजी से विकसित होते हैं, जिससे दवा बेअसर होने लगती है। यह प्रक्रिया न केवल दवाओं के अनुचित उपयोग के कारण, बल्कि खेती बाड़ी के गलत तरीकों के कारण भी बढ़ रही है। डॉक्टरों के साथ-साथ मरीजों को भी एंटीबायोटिक दवाओं के सही उपयोग के बारे में पता होना चाहिए। ओवर-प्रेस्क्रिप्शन और खुद से दवा खरीदना दोनों की जांच होनी चाहिए।
साभार- अमर उजाला