Publish Date:25-Jun-2019 21:57:38
हैदराबाद के रहने वाले 45 वर्षीय प्रोफेसर सतीश कुमार ने प्लास्टिक से पेट्रोल बनाने का एक अनोखा कारनामा कर दिखाने का दावा किया है. मूलतः वह एक मैकेनिकल इंजीनियर है और काफी सालों से हैदराबाद के निवासी है. उनका दावा है की वह तीन चरणों की प्रक्रिया के द्वारा प्लास्टिक से पेट्रोल बना सकते हैं. इस प्रक्रिया को उन्होंने प्लास्टिक पायरोलीसिस का नाम दिया है. जिसमें निर्वात में प्लास्टिक को अप्रत्यक्ष रूप से गरम करने पर, यह अपने संघटकों में टूट जाता है. जिसके बाद गामीकरण और अणु संघनन की प्रक्रिया के बाद यह पेट्रोल में बदल जाता है.
इसके साथ ही सतीश कुमार ने हाइड्रोक्सी प्राइवेट लिमिटेड के नाम से एक कंपनी भी बनाई है. जोकि अति लघु, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के तहत रजिस्टर है. इस कंपनी के तहत वह प्लास्टिक से पेट्रोल बनाते हैं, जहां प्लास्टिक को रीसायकल करके डीजल, विमान ईंधन और पेट्रोल बनाया जाता है. तकरीबन 500 किलो प्लास्टिक जो पुनः अपनी वास्तविक अवस्था में नहीं आ सकता, उसे इस प्रक्रिया के द्वारा 400 लीटर पेट्रोल में बदला जा सकता है. उनके मुताबिक़ यह बहुत ही सरल प्रक्रिया है जिसमें बिलकुल पानी का प्रयोग नहीं किया जाता है और इसमें पानी वेस्ट के तौर पर भी नहीं निकलता है.
प्रतिदिन बनाते हैं 200 लीटर पेट्रोल
सतीश कुमार ने न्यूज़18 को बताया कि यह प्रक्रिया निर्वात में होती है अतः इसमें वायु प्रदूषण भी नहीं होता है. 2016 से लेकर अबतक वह करीब 50 टन प्लास्टिक को पेट्रोल में बदल चुके हैं. वह इस प्रकार के प्लास्टिक का प्रयोग करते हैं जिसे किसी भी प्रकार से पुनः प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है. प्रतिदिन करीब 200 किलो प्लास्टिक के प्रयोग से वह 200 लीटर पेट्रोल बनाते हैं.
40-50 प्रति लीटर बेचते हैं पेट्रोल
पेट्रोल बनाने के बाद सतीश इसे स्थानीय व्यापारियों को 40 से 50 रुपये प्रति लीटर की दर से बेचते हैं. पर वाहनों में प्रयोग के लिए यह कितना उपयोगी है, इसकी जांच होना अभी बाकी है. PVC ( पॉली विनाइल क्लोराइड ) और PET ( पॉली एथेलीन टैरिफथेलेट) के अतिरिक्त सभी प्रकार का प्लास्टिक प्रयोग में लाया जा सकता है और प्लास्टिक को छांटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है.
विचार जिसने किया प्रेरित
सतीश कुमार का विचार बहुत नया नहीं था, क्योंकि यह प्रक्रिया बहुत सरल और पूरी तरह से प्लास्टिक के संघटकों के टूटने पर आधारित है. यह पायरॉयसिस ( ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में थर्मोकेमिकल प्रक्रिया के द्वारा किसी वस्तु को इसके मूल अणुओं में तोड़ना ) नाम की प्रक्रिया कहलाती है. सतीश बताते हैं कि प्लास्टिक एक प्रकार का बहुलक है और इससे कुछ भी बनाने के लिए इसके बहुलकों को तोड़ना जरूरी होता है. बहुलक ( polymer ) वह पदार्थ है, जब एक ही प्रकार के कई अणु जब एक साथ जुड़े होते हैं तब वह बड़ा अणु बहुलक कहलाता है. यह प्रक्रिया जिसमें बहुलकों को अलग करके उन्हें पुनः अपने मूल अणु ( molecule ) में वापस लाया जाता है, उसे विबहुलकन ( depolarization ) कहा जाता है.
400 डिग्री सेल्सियस तापमान पर किया जाता है गर्म
इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद बहुलक अपने तत्वों (monomers ) में टूट जाता है. इसके बाद प्लास्टिक को पिघलाया जाता है. प्लास्टिक को दूसरे पदार्थों के साथ मिला कर निर्वात में 350 से 400 डिग्री सेल्सियस तापमान तक गरम किया जाता है. जिसमें इंडक्शन हीटिंग , माइक्रोवविंग और इंफ्रारेड हीटिंग का प्रयोग होता है इसके बाद ही पेट्रोल बनता है.
सतीश कुमार ने कहा कि इस संयंत्र को स्थापित करने के पीछे हमारा मुख्य लक्ष्य पर्यावरण के लिए कुछ करने की भावना थी. इसके पीछे हमारा कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं है. हम अपनी मौजूदा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों को एक साफ सुथरा भविष्य देना चाहते हैं. हम अपनी तकनीक को दूसरे के साथ भी साझा करना चाहेंगे यदि कोई उद्यमी इसमें अपनी रूचि दिखाता है.
(रिपोर्ट- बालकृष्ण एम)
साभार- न्यूज 18