भारतीय संविधान ने संसद में देश के सभी क्षेत्रों के लोगों के प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की थी. इसी के तहत राष्ट्रपति को अधिकार था कि वे एंग्लो इंडियन समुदाय के दो लोगों को लोकसभा में मनोनीत कर सकें ताकि जनसंख्या में कम होने के बाद भी उनका प्रतिनिधित्व हो सके. लेकिन अब एंग्लो इंडियन समुदाय के सदस्यों का लोकसभा में नामांकन इतिहास की बात हो गई है. यह प्रावधान 25 जनवरी 2020 तक कायम था, जिसे केंद्र सरकार ने पांच साल पहले 126वें संशोधन के जरिये समाप्त कर दिया.
वर्ष 2019 में दिसंबर महीने में लोकसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण को 10 साल तक और बढ़ाने के लिए एक संशोधन विधेयक पास किया गया. वहीं, इसी के साथ लोकसभा और विधान सभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों को नामित करने के प्रावधान को खत्म करने का विधेयक भी पारित कर दिया गया. उस समय जब देश में नागरिकता (संशोधन) कानून पर बहस हो रही थी तो उसके बीच ही सरकार इसे हटाने से जुड़ा नियम लेकर आई थी. 74 सालों तक अनुसूचित जाति और जनजातियों को जहां आरक्षण मिलता रहा है. वहीं एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों को भी संसद और राज्य की विधान सभाओं में नामित किया जाता रहा.
545 सीटें, 2 एंग्लो इंडियन के लिए थीं
एससी-एसटी वर्ग के लिए आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 334 (ए) में है, जबकि एंग्लो इंडियन वर्ग के लिए मनोनयन 334 (बी) में है. सरकार ने एक संशोधन के जरिये अनुच्छेद 334 (बी) को समाप्त कर दिया. कैबिनेट ने फैसला लिया कि लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए सीटें आरक्षित नहीं होंगी. लोकसभा की 84 सीटें अनुसूचित जाति और 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. पहले दो सीटें एंग्लो इंडियन वर्ग के लिए आरक्षित थीं. इन सबको मिलाकर लोकसभा में 545 सीटें पूरी होती हैं. जिन दो सीटों पर सरकार इस समुदाय के दो सदस्यों का नामांकन करती थी, अब यह नामांकन नहीं होगा.
किनको कहा जाता है एंग्लो इंडियन
संविधान का अनुच्छेद 366 एंग्लो-इंडियन को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जिसके पिता या जिनका कोई पुरुष पूर्वज यूरोप का रहने वाला था या फिर उसका यूरोप से कोई कनेक्शन था, लेकिन जो भारत के किसी हिस्से में रहता है या फिर ऐसे क्षेत्र में पैदा हुआ है जहां पर उसके माता-पिता रहते हैं या वहां का निवासी है. एंग्लो-इंडियन धार्मिक, सामाजिक और साथ ही भाषाई अल्पसंख्यक हैं. संख्या पर अगर गौर करें तो यह अत्यंत ही छोटा समुदाय है. अनुच्छेद 331 के तहत अगर समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो राष्ट्रपति एंग्लो-इंडियन समुदाय के दो सदस्यों को लोकसभा में नामांकित कर सकते हैं. अनुच्छेद 333 के तहत अगर राज्यपाल की राय है कि एंग्लो इंडियन समुदाय को विधान सभा में प्रतिनिधित्व की जरूरत है और वहां उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, तो वह उस समुदाय के एक सदस्य को विधानसभा में नामांकित कर सकते हैं.
सरकार ने दिया क्या तर्क
जब सरकार के इस प्रस्ताव का विपक्ष ने विरोध किया तो उसने कहा था कि यह नियम अनुसूचित जाति के साथ भेदभाव करने वाला है. तब तत्कालीन केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना था कि एंग्लो इंडियन समुदाय के 296 लोग ही भारत में हैं. ऐसे में 20 करोड़ की अनुसूचित जाति के साथ नाइंसाफी करना ठीक नहीं है. कांग्रेस के सांसद हिबी एडेन का कहना था कि केंद्रीय मंत्री का आंकड़ा गलत है, इस समय देश में करीब साढ़े तीन लाख एंग्लो-इंडियन हैं. उस समय 14 राज्यों की विधानसभाओं में एक-एक एंग्लो-इंडियन सदस्य था. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. लेकिन अब राज्यों में भी उनके लिए कोई आरक्षण नहीं बचा है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के जॉर्ज बेकर और रिचर्ड हे एंग्लो इंडियन समुदाय के आखिरी मनोनीत सांसद थे.
साभार- न्यूज 18