08-May-2024

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राम मंदिर पर 3 मिनट में सुनवाई, मध्यस्थता के लिए 15 अगस्त तक मिला समय

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अयोध्या के राम मंदिर मामले में मध्यस्थता कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट से 15 अगस्त तक का समय मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर हामी भर दी है. बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले को मध्यस्थता के लिए भेजने के दो महीने बाद सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले पर सुनवाई की.

सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई महज 3 मिनट में ही खत्म हो गई. इस मामले की सुनवाई CJI रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच ने की.

मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि मध्यस्थता की सभी संभावनाओं के लिए खुले हैं. वहीं, निर्मोही अखाड़ा ने शिकायत की है कि पार्टियों के बीच कोई आपसी चर्चा नहीं हुई है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया पर संतुष्ट है.

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि अयोध्या मध्यस्थता पैनल परिणामों के बारे में आशावादी है. इसलिए  कोई कारण नहीं है कि समाधान की संभावना तलाशने के लिए समय नहीं दिया जाए. इसका मतलब यह भी है कि अंतिम रिपोर्ट आने तक इस मामले में कोई सुनवाई नहीं होगी.

मामले के सौहार्दपूर्ण निपटान की संभावना तलाशने के लिए शीर्ष अदालत ने तीन-सदस्यीय मध्यस्थता समिति का गठन किया था. समिति सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को मध्यस्थता समिति के पास ये मामला भेजा था.

यह लोग हैं कमिटी के सदस्य

मध्यस्थता समिति में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एफएमआई कलीफल्ला, आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राम पांचू का नाम शामिल है.

सुप्रीम कोर्ट के 8 मार्च के आदेश के बाद शुक्रवार को पहली सुनवाई हुई. 8 मार्च को कोर्ट ने कहा था कि मध्यस्थता प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर शुरू होगी. समिति चार सप्ताह के भीतर प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी.

कोर्ट ने समिति को इन-कैमरा प्रॉसिडिंग और उसे आठ सप्ताह के भीतर पूरा करने के लिए कहा था. संवैधानिक पीठ ने कहा था कि विवाद के संभावित समाधान के लिए मध्यस्थता के संदर्भ में कोई ‘कानूनी बाधा’ नहीं है.

हिन्दू समूहों ने किया था विरोध

शुरुआत में निर्मोही अखाड़ा और उत्तर प्रदेश सरकार को छोड़कर हिंदू समूहों ने कोर्ट के सुझाव का विरोध किया था. जबकि मुस्लिम निकायों ने प्रस्ताव का समर्थन किया था. हिंदू निकायों का तर्क था कि समझौते के लिए पहले किए गए प्रयास विफल रहे.

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि मध्यस्थता की कार्यवाही ‘अत्यंत गोपनीयता’ के साथ की जानी चाहिए और मध्यस्थों सहित किसी भी पक्ष द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को गोपनीय रखा जाना चाहिए और किसी अन्य व्यक्ति के सामने प्रकट नहीं किया जाना चाहिए.

यह है मामला

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या से लगभग 7 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में मध्यस्थता का स्थान तय किया था और कहा था कि राज्य सरकार द्वारा मध्यस्थों के ठहरने के स्थान, उनकी सुरक्षा, यात्रा सहित सभी व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि कार्यवाही तुरंत शुरू हो सके.

बता दें कि साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच बराबर बांट दिया था. इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर की गई हैं.

साभार- न्‍यूज 18

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