विदेश यात्रा से लौट कर आदत के अनुसार पुराने अख़बार पलटे। किसान आन्दोलन मुख्य मुद्दा छाया हुआ था। मन्दसौर में पुलिस द्वारा ६ व्यक्ति मारे गये जो बहुत दुखद है। यद्यपि आन्दोलन केवल म.प्र तथा महाराष्ट्र में ही सीमित रहा फिर भी सभी दलों के केन्द्रीय नेतागण सक्रिय हो गये।
किसानों का कोई भी मुद्दा भावनात्मक एवं राजनैतिक दृष्टि से बहुत संवेदनशील होता है इसलिये सभी नेताओं तथा अधिकांश समाचारपत्रों ने बहुत सँभल कर कुछ कहा है। किसानों के एक वर्ग द्वारा की गई भयंकर हिंसा की भर्त्सना खुल कर किसी ने नहीं की। हिंसा को रोकने के लिये पुलिस का बल प्रयोग करना एक अपराध माना जाता है। गांधी के इस देश में हिंसा ध्यानाकर्षण करने का एक अनिवार्य अंग बन गई है। --- कुछ संगत बिन्दु :-
१- किसानों की समस्यायें बहुत गम्भीर हैं परंतु एकमात्र मुख्य समस्या किसानों को उनकी फ़सल का उचित दाम न मिलना है। जब सब चीज़ों के भाव तेज़ी से बढ़ें हैं वहीं किसानों के कृषि उत्पाद का मूल्य कछुवे की गति से बढ़ा है। मण्डी, आढ़तियों और सरकारी ख़रीदी के चक्रव्यूह में किसान दशकों से पिस रहा है और इसके लिये किसी ने कुछ नहीं किया।किसी भी राजनैतिक दल की सरकार ने इसके लिये कोई वैकल्पिक बाज़ार नहीं खड़ा किया।
२- सभी सरकारें शहरों के मध्यम तथा निम्न मध्यम वर्ग के लोगों से बहुत डरतीं है क्योंकि वे बहुत मुखर तथा चुनावों की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं। उन्हें सस्ता अनाज दिलवाने के लिये किसानों का लगातार शोषण किया गया।
३- १९८० से किसानों का ऋण माफ़ किया जा रहा है । वोटों के लिये इसका बहुत प्रयोग किया गया और आगे भी किया जायेगा। इससे किसानों का कोई भला नहीं हुआ और ऋण माफ़ी ने केवल क्षणिक अफ़ीम का काम किया।
४- कृषि से भारत के सकल आय का केवल १७% प्राप्त होता है जबकि ६०% जनसंख्या इस पर आश्रित है। अतिरिक्त जनसंख्या को बड़े स्तर पर उद्योगों में लगाने का कोई गम्भीर प्रयास नहीं किया गया है।
५- गाँवों में केवल किसान नहीं रहते हैं। लगभग एक तिहाई लोग भूमिहीन खेतिहर मज़दूर हैं। इन्हें ऋण माफ़ी से कोई लेनादेना नहीं है। इनकी आवाज़ कोई नहीं उठाता है। इन्हें मनरेगा जैसी योजनाओं की रोटी फेंक कर शांत रखा जाता है।यदि किसानों को भरपूर मूल्य मिलेगा तो इन मज़दूरों को भी लाभ होगा।
६- किसानों के मुद्दों पर राजनीति बहुत होगी तथा सरकारें बनती बिगड़ती रहेंगी । किसानों को लाभप्रद मूल्य दिलवाना बहुत जटिल काम है क्योंकि इसके लिये देश में एक नया क्रांतिकारी आर्थिक एवं सामाजिक सामंजस्य लाना होगा। इतना दूरदर्शी तथा साहसी कोई नेता दिखाई नहीं पड़ता है।
एनके त्रिपाठी, सेवानिवृत्त डीजीपी
( जैसा उन्होंने व्हाट्सएप पर व्यक्त किये है)